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मन भर आया / चंद्र रेखा ढडवाल
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बनाए आँख सुरमेदानी
मेंहदी रचाए हाथों में
पैरों में वह भी
छिदवाए कान नाक
पहने झुमकेनाचती
गर्मी से चिपचिपाती देह पर
ढोए मन भर
बनारसी बंगलूरी साड़ी
सँवरते-बनते
पोर-पोर पिराए दर्द से
उसका भी
हँस -हँस कर रीझों से
अपने नाम लिखा जो
उसके लिए सोचा भी
तो मन भर आया