भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पढाई / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:39, 18 दिसम्बर 2009 का अवतरण
बाइबिल नहीं पढ़ी मैंने
नहीं, कुरान नहीं
गीता नहीं पढ़ी मैंने
पढ़ा तुमको
खुद को पढ़ा मैंने
चढ़ा एसे पहाड़ पर
जिस पर शायद ही चढ़ा हो कोई
ऊँचाई ऐसी
कि अश-अश कर उठे सितारे
नीचे जमीन को दूर-दूर तक पता नहीं
यहाँ एक आग जल रही है
निकल रहे हैं लपटों से हमी-हम बार-बार
अपनी पुकारों के प्रत्युतर में
बाइबिल नहीं पढ़ी मैनें
रचनाकाल : 1993
शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।