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पत्थर-से गम सहते हैं / रमा द्विवेदी
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:27, 19 दिसम्बर 2009 का अवतरण
कोमल बचपन पत्थर से गम सहते हैं।
रूखे अधर, आंख में पानी,
बचपन जाने से पहले ही बीती जाय जवानी,
नहीं पसीजे कोई इनके दुख से
चीख-चीख यह कहते हैं ......
भोजन, कपडा नहीं बराबर,
इनके लिए दिन-रात परिश्रम,
खा पीकर जब करते सब आराम,
काम तब भी ये करते हैं.......
कैसी आज़ादी जहाँ सुकुमारता बंधक है?
बडे-बडे कानून हैं पर इनका कोई न रक्षक है?
नारे लगाते बड़े-बड़े फिर भी,
इनका दुख न कोई हरते हैं.....
उनके अन्तस के चीत्कार को,
कौन सुनेगा उनकी पुकार को?
पग-पग पर ठोकर खाते,
फिर भी प्रतिकार न करते हैं.....
जीने का हक इन्हें भी दे दो,
अधिकार,प्यार इन्हें भी दे दो,
इनका जीवन बदलेंगे हम,
संकल्प आज ये करते हैं.....