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दूसरा / चंद्र रेखा ढडवाल
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दरख़्त की शाख़-शाख़ पर
गाती फिरती चिड़िया
पत्तों की छाँव में घोंसला
घोंसलों में चहक नन्ही-सी
देखती आँखें भर जाती
स्वप्नों से
लहक उठतीं आस में
मुँद जातीं लाज से
. . . .
अंधड़ पानी
ढह जाता दरख़्त
टूटता घोंसला
चीख़ होती चटक
बदहवास उड़ती चिड़िया
देखती आँखें
डूब जातीं आँसुओं में
लौटती / बटोरती
तिनका-तिनका हुआ घोंसला
. . . .
औरत चाहती है
देखे
एक ही दृश्य
पर केवल देखती ही नहीं
वह तो झेलती है
पल-पल दूसरा ही.