भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हल्लो राजा / राकेश रंजन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:26, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हल्लो राजा!
कभी-कभी तो कठिन धूप में
चल्लो राजा!
कभी-कभी तो चिन्ता-भय से
गल्लो राजा!
कभी-कभी तो जठरागिन में
जल्लो राजा!

जब तिनके-भर सुख की ख़ातिर
स्याह जंगलों-जैसे दुक्खों से जुज्झोगे
तब बुज्झोगे
परजा होना खेल नहीं है
किसी जनम में
इसका सुख से मेल नहीं है!


मैंने पूछा :
राजा, कैसी है तुकबन्दी?
राजा बोले :
बेहद गन्दी!