भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभी-अभी हटी है / नागार्जुन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:07, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण (अभी-अभी हटी है/ नागार्जुन का नाम बदलकर अभी-अभी हटी है / नागार्जुन कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अभी-अभी हटी है
मुसीबत के काले बादलों की छाया
अभी-अभी आ गयी--
रिझाने, दमित इच्छाओं की रंगीन माया
लगता है कि अभी-अभी
ज़रा-सी गफ़लत में होगा चौपट किया-कराया

ठिकाने तलाश रही है चाटुकारों की भीड़
शंख फूँकने लगे नये-नये कुवलयापीड़
फिर से पहचान लो, वाद्यवृन्दों में पुरानी गमक और मीड़
दिखाई दे गये हैं गीध के शावकों को अपने नीड़

(1977 में रचित)