भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी / ओ पवित्र नदी / केशव

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण (आदमी. / केशव का नाम बदलकर आदमी / ओ पवित्र नदी / केशव कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमियों की बस्ती में भी
आदमी की तलाश है
यह कैसा
अविश्वास है

बनत्ते-बनते जिसके

कितना कुछ निचुड़ जाता है
और टूटते वक्त
बस कहीं से भी कुछ
नमालूम सा
उखड जाता है

फिर दुख का अंधड़
वृक्ष की तरह फैलते आदमी को
झकझोरता है
टहनी-टहनी
पत्ता-पत्ता
बस यहीं
आदमी को
उसका आत्मविश्वास पुकारता है
जिसे वह
अंधड़ से गुज़रकर स्वीकारता है