भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाके लिए घर आई घिघाय / बिहारी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:56, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण (जाके लिए घर आई घिघाय का नाम बदलकर जाके लिए घर आई घिघाय / बिहारी कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी

आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी

ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी

वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी ।।