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समूहगान / शैलेन्द्र
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क्रान्ति के लिए जली मशाल
क्रान्ति के लिए उठे क़दम !
भूख के विरुद्ध भात के लिए
रात के विरुद्ध प्रात के लिए
मेहनती ग़रीब जाति के लिए
हम लड़ेंगे, हमने ली कसम !
छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ
बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ
किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँ
लूट का यह राज हो ख़तम !
तय है जय मजूर की, किसान की
देश की, जहान की, अवाम की
ख़ून से रंगे हुए निशान की
लिख रही है मार्क्स की क़लम !