भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माथे पे बिंदिया चमक रही / भावना कुँअर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:34, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माथे पे बिंदिया चमक रही
हाथों में मेंहदी महक रही।

शर्माते से इन गालों पर
सूरज सी लाली दमक रही।

खन-खन से करते कॅगन की
आवाज़ मधुर सी चहक रही।

है नये सफर की तैयारी
पैरों में पायल छनक रही।