भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन / संतरण / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:37, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण (जीवन (संतरण) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर जीवन / संतरण / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रहा है आज,

कल झर जायगा !

इसलिए,
हर पल विरल
परिपूर्ण हो रस-रंग से,
मधु-प्यार से !
डोलता अविरल रहे हर उर
उमंगों के उमड़ते ज्वार से !

एक दिन, आख़िर,
चमकती हर किरण बुझ जायगी...
और
चारों ओर
बस, गहरा अँधेरा छायगा !
जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रहा है आज,
कल झर जाएगा !

मत लगाओ द्वार अधरों के
दमकती दूधिया मुसकान पर,
हो नहीं प्रतिबंध कोई
प्राण-वीणा पर थिरकते
ज़िन्दगी के गान पर !

एक दिन
उड़ जायगा सब ;
फिर न वापस आयगा !
जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रह है आज,
कल झर जायगा !