Last modified on 30 दिसम्बर 2009, at 14:39

जीवन / संतरण / महेन्द्र भटनागर

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:39, 30 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रहा है आज,
कल झर जायगा!

इसलिए,
हर पल विरल
परिपूर्ण हो रस-रंग से,
मधु-प्यार से!
डोलता अविरल रहे हर उर
उमंगों के उमड़ते ज्वार से!

एक दिन, आख़िर,
चमकती हर किरण बुझ जायगी...
और
चारों ओर
बस, गहरा अँधेरा छायगा!
जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रहा है आज,
कल झर जाएगा!

मत लगाओ द्वार अधरों के
दमकती दूधिया मुसकान पर,
हो नहीं प्रतिबंध कोई
प्राण-वीणा पर थिरकते
ज़िन्दगी के गान पर!

एक दिन
उड़ जायगा सब;
फिर न वापस आयगा!
जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रह है आज,
कल झर जायगा!