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प्रतीक्षा / मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर

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आज तक मैंने तुम्हारी
चाहना का गीत गाया,
और रह-रह कर तड़पती
याद में जीवन बिताया,
क्या प्रतीक्षा में सदा ही
मैं व्यथा सहता रहूंगा?

स्वप्न में देखा कभी यदि,
कह उठा, ‘बस आज आये’!
दिवस बीता, रात बीती
पर, न सुख के मेघ छाये,
कल्पना में ही सदा क्या
मैं विकल बहता रहूंगा?

प्राण उन्मन, भग्न जीवन,
मूक मेरी आज वाणी,
याद आती है विगत युग
की वही मीठी कहानी,
क्या अभावों की कथा ही
मैं सदा कहता रहूंगा?