भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अवधूत / राग-संवेदन / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
					
										
					
					लोग हैं _ 
ऐसी हताशा में 
व्यग्र हो 
कर बैठते हैं 
आत्म-हत्या!  
या 
खो बैठते हैं संतुलन 
तन का / मन का!  
व हो विक्षिप्त 
रोते हैं - अकारण!  
हँसते हैं - अकारण!  
किन्तु तुम हो 
स्थिर / स्व-सीमित / मौन / जीवित / संतुलित 
अभी तक!  
वस्तुत:  
जिसने जी लिया संन्यास 
मरना और जीना 
एक है उसके लिए!  
विष हो या अमृत 
पीना 
एक है उसके लिए!
	
	