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दसों दिशाओं में (कविता) / नवल शुक्ल

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बारिश हो, हो बारिश
चींटियाँ असंख्य
मुँह में सफ़ेद अण्डे दबाए
पृथ्वी पर गुज़र जाएँ
सुगन्ध उठे मिट्टी की
आकाश तक फ़ैल जाए
किसानों की टिटकारी
दुनिया-भर के बच्चे
गलियों में, सड़कों पर
दौड़ें, चिल्लाएँ, भीग-भीग जाएँ
भर जाएँ नदी, नाले, तालाब
महंगे जूते सड़ जाएँ।

बंद हो जाएँ, महल, अटारी, गेट
मेंढ़क टर्राएँ
फैलती चली जाए पूरी पृथ्वी पर
घास-पतवार, झाड़-झंखाड़
बचे-खुचे पेड़ लहराएँ
ऎसी बारिश हो
हो बारिश
कि सबसे पहले और बाद में
ख़ूब फुदके गौरैया
उसकी आवाज़
दसों दिशाओं में फैल जाए।