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Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक: मध्य निशा का गीत
  रचनाकार: नरेन्द्र शर्मा
    तुम उसे उर से लगा स्वर साधतीं--

उठते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के!

        मूक होती कथा मेरी,
        शून्य होती व्यथा मेरी,
        चीर निशि-निस्तब्धता जो,

तीर-से आते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के!

        चाँद भी पिछले पहर का,
        मुग्ध हो जाता, ठहराता!
        क्या विदा-बेला न टलती

यदि कहीं आते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के?

        बनी रहती चाँदनी भी
        गगन की हीरक-कनी भी
        ओस बन आती अवनि पर

चाँदनी, सुनकर सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के?

        रुद्ध प्राणों को रुलाते,
        आज बाहर खींच लाते
        निमिष में अंगार उर-सा

सूर्य, यदि आते सिसकते स्वर तुम्हारे मधुर बेला के?