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विश्वास / संवर्त / महेन्द्र भटनागर

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जीवन में
पराजित हूँ,
हताश नहीं !

निष्ठा कहाँ ?
विश्वासघात मिला सदा,
मधुफल नहीं,
दुर्भाग्य में
बस
दहकता विष ही बदा !

अभिशप्त हूँ,
पग-पग प्रवंचित हूँ,
निराश नहीं !

क्षणिक हैं —
ग्लानि
पीड़ा
घुटन !
वरदान समझो
शेष कोई
मोह-पाश नहीं !