भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हादसा-दर-हादसा / अश्वघोष

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:30, 3 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष }} [[Category:गज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हादसा-दर-हादसा-दर-हादसा होता हुआ
क्या कभी देखा किसी ने आसमाँ रोता हुआ

ये ज़मीं प्यासी है फिर भी जानकर अनजान-सा
हुक्मरा-सा एक बादल रह गया सोता हुआ

मेरी आँखों में धुआँ है और कानों में है शोर
सोच की बैसाखियों अर ज़िस्म को ढोता हुआ

एक दरिया कल मिला था राजधानी में हमें
आदमी के खून से अपना बदन धोता हुआ

चल रहा हूँ जानकर भी अजनबी है सब यहाँ
प्यार की हसरत में एक पहचान को बोता हुआ