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चिड़ियाँ -2 / नवनीत शर्मा

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अच्‍छा लगता है उनका चहकना
सुनते हैं
देखते हैं उड़ान भर
शाख पर लौटती चिडि़यों को
अब भी घुड़कते हैं चील
कहीं ढोती हैं दाने चिडि़याँ
पुट्ठे गिद्धों के चमकते हैं
 
चिडि़या होना अब तक अपराध नहीं था
बहुत सालता है
ज़मीन और आकाश
दोनों से दूर हो जाना
और किसी दिन घर से
काम के लिए निकलना
और तंदूर हो जाना
पिता की नेमप्‍लेट के आगे
दबने वाली
इससे भी बुरी है क्रांति
और संसद की अटारी पर
गाते हैं कबूतर
ओम शांति ओम