भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जवानी का झण्डा / रामधारी सिंह "दिनकर"

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:34, 7 जनवरी 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खड़ा हो, कि पच्छिम के कुचले हुए लोग
उठने लगे ले मशाल,
खड़ा हो कि पूरब की छाती से भी
फूटने को है ज्वाला कराल!
खड़ा हो कि फिर फूँक विष की लगा
धुजटी ने बजाया विषान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!

गरज कर बता सबको, मारे किसीके
मरेगा नहीं हिन्द-देश,
लहू की नदी तैर कर आ गया है,
कहीं से कहीं हिन्द-देश!
लड़ाई के मैदान में चल रहे लेके
हम उसका उड़ता निशान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!

अहा! जगमगाने लगी रात की
माँग में रौशनी की लकीर,
अहा! फूल हँसने लगे, सामने देख,
उड़ने लगा वह अबीर
अहा! यह उषा होके उड़ता चला
आ रहा देवता का विमान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा,
ओ मेरे देश के नौजवान!

रचनाकाल: १९४४



यूनान के युद्धोत्तर विद्रोह के समय रचित