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एक नींद-एक जागरण / दिनेश कुमार शुक्ल
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एक नींद
जिसमें खुली रहती हैं आंखें
एक जागरण
जिसमें बन्द रहता है
एक-एक रंध्र
एक धड़कन
जिसके अन्तस् में
धड़कती है एक और धड़कन
सनसनाता धमनियों में
द्रुत से विलम्बित में खिंचता
एक प्रवाह
विलीन होता
पाताल में
बंधे हाथ-पांव एक कमल
जल में डूबा
खोलता है अपनी पंखुरियां
धीरे-धीरे
निगूढ़तम एक मौन
रंगता खरखराता है कण्ठ में
ठीला करता हुआ
सारे कसाव को --
फैले हुये हाथ
खुला मुंह आवाक्
गूँजता है एक प्रश्न
कहां कहां कहां ....
और फिर से शुरू होती है
एक गाथा
बेहतर संसार की
संभावना के साथ