भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे नहीं मानते / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 20 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=जब मैं स्त्री हूँ / रंजना …)
स्त्रियों के
हो सकते हैं विचार
कठिन समय में
नहीं मानते वे
सोच सकती हैं कुछ
निभा सकती हैं कोई भूमिका
लोकतन्त्र
और मनुष्यता के संकट के समय।