भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अभी मरने की बात कहाँ / तारा सिंह
Kavita Kosh से
Rajivsinghonline (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 07:02, 27 दिसम्बर 2006 का अवतरण
रचनाकार: तारा सिंह
अभी मरने की बात कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- अभी तो हूँ मैं बंद कली
- भौंरे ने घूँघट खोला ही नहीं
- मृदु जल से नहलाया ही नहीं
- जीवन परिक्रमा पूरी हुई कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- उठते सूरज को देखा ही नहीं
- चाँदनी में नहाया ही नहीं
- आकांक्षाएँ मेरी बाँहों को थामी ही नहीं
- धरा से धैर्य सीखी ही नही
- सुंदरता अंगों से लिपटी कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- अभी डाली पर कोमल पत्ते भरे नहीं
- पौधे जमीन को जड़ से जकड़े नहीं
- सौरभ सुगंध का व्यापारी
- भौंरा अभी तक पहुँचा कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- गुलशन में बहार आई नहीं
- चम्पा की कतार सजी नहीं
- मोलसिरी की छाँव में बैठी नहीं
- मतवाली कोयल को अमुआ की
- डाली पर पी- पी पुकारते सुनी कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- सीने से लगाकर हवा ने दुलराया नहीं
- पुष्प, पुष्प को पहचाना नहीं
- अभी तो हूँ , मैं एक बंद कली
- मेरे विकसित रूप को बाग का
- माली ने देखा कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ