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कुचाग्र / अशोक वाजपेयी
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रतिऋतु में
प्रेम के अरण्य में
कत्थई गुलाब
कसमसाकर सिर उठाते हैं,
पूछते हैं :
कहाँ है सुख, उसकी ओसधूप?