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अच्छी किताब / देवमणि पांडेय
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एक  अच्छी किताब अन्धेरी रात  में
नदी के उस पार किसी दहलीज़ पर 
टिमटिमाते दीपक की ज्योति है
दिल के उदास काग़ज़ पर 
भावनाओं का झिलमिलाता मोती है 
जहाँ  लफ़्ज़ों में चाहत के सुर बजते है 
ये  वो साज़ है
इसे तनहाइयों में पढ़ो 
ये  खामोशी की आवाज़ है  
एक  बेहतर किताब हमारे जज़्बात में 
उम्मीद  की तरह घुलकर 
कभी हँसाती, कभी रुलाती है 
रिश्तों के मेलों में बरसों पहले बिछड़े
मासूम बचपन से मिलाती है  
एक  संजीदा किताब 
हमारे सब्र को आज़माती है
किताब को ग़ौर से पढ़ो
इसके हर पन्ने पर 
ज़िन्दगी मुस्कराती है
 
	
	

