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बेटियाँ / कुँवर बेचैन

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रचनाकार: कुँअर बेचैन

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बेटियाँ-

शीतल हवाएँ हैं

जो पिता के घर बहुत दिन तक नहीं रहतीं

ये तरल जल की परातें हैं

लाज़ की उज़ली कनातें हैं

है पिता का घर हृदय-जैसा

ये हृदय की स्वच्छ बातें हैं

बेटियाँ -

पवन-ऋचाएँ हैं

बात जो दिल की, कभी खुलकर नहीं कहतीं

हैं चपलता तरल पारे की

और दृढता ध्रुव-सितारे की

कुछ दिनों इस पार हैं लेकिन

नाव हैं ये उस किनारे की

बेटियाँ-

ऐसी घटाएँ हैं

जो छलकती हैं, नदी बनकर नहीं बहतीं