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लौट आ रे / कुँअर बेचैन

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लेखक: कुँअर बेचैन

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लौट आ रे !

ओ प्रवासी जल !

फिर से लौट आ !


रह गया है प्रण मन में

रेत, केवल रेत जलता

खो गई है हर लहर की

मौन लहराती तरलता

कह रहा है चीख कर मरुथल

फिर से लौट आ रे!


लौट आ रे !

ओ प्रवासी जल !

फिर से लौट आ !


सिंधु सूखे, नदी सूखी

झील सूखी, ताल सूखे

नाव, ये पतवार सूखे

पाल सूखे, जाल सूखे

सूख्सने अब लग गए उत्पल,

फिर से लौट आ रे !


लौट आ रे !

ओ प्रवासी जल !

फिर से लौट आ !


-- यह कविता deepak द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।