भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोख न लेना पानी / कुँअर बेचैन
Kavita Kosh से
64.152.195.34 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 13:16, 29 दिसम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: कुँअर बेचैन
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
सूरज !
सोख न लेना पानी !
तड़प तड़प कर मर जाएगी
मन की मीन सयानी !
सूरज, सोख न लेना पानी !
बहती नदिया सारा जीवन
साँसें जल की धारा
जिस पर तैर रहा नावों-सा
अँधियारा उजियारा
बूँद-बूँद में गूँज रही है
कोई प्रेम कहानी !
सूरज, सोख न लेना पानी !
यह दुनिया पनघट की हलचल
पनिहारिन का मेला
नाच रहा है मन पायल का
हर घुँघुरू अलबेला
लहरें बाँच रही हैं
मन की कोई बात पुरानी !
सूरज, सोख न लेना पानी !