भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम फकीरों की गली में झांकिए / रवीन्द्र प्रभात
Kavita Kosh से
रवीन्द्र प्रभात (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:36, 4 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatGhazal}} <poem> हम फकीरों की गली म…)
हम फकीरों की गली में झांकिए !
सच-बयानी को बुरा मत मानिए !!
फक्र है खुद की जवानी पर यदि -
तो बुढापे का भरम भी जानिए !!
जर्फ़ हो तो सर झुकाने की जगह -
सर झुके जितना झुकाना चाहिए !!
सुर्ख़ियों में आज तो मदहोश हो -
होश आएंगे मिलेंगे जब हाशिये !!
आपकी हर बात अच्छी है मियाँ -
पर मेरे कश्मीर को मत मांगिए !!
बक्त कहता है यही अब ए " प्रभात"
आस्तीं में सांप मत अब पालिए !!