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एक ग़ज़ल हिंदी को समर्पित / रवीन्द्र प्रभात

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दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी -
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।

 
बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से -
पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।



सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में जो रची -
कबीरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी ।



फ्रेंच,इंग्लिस और जर्मन है भले परवान पर -
आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।



चांद भी है,चांदनी भी,गोधुली- प्रभात भी -
हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।