भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी दीवानगी को गंवाना फ़िज़ूल / रवीन्द्र प्रभात

Kavita Kosh से
रवीन्द्र प्रभात (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:19, 5 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> अपनी दीवानगी को गं…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपनी दीवानगी को गंवाना फ़िज़ूल ,
जुगनुओं रोशनी में नहाना फिजूल ।

किस्त में खुदकुशी इश्क का है चलन ,
इश्क दरिया है पर डूब जाना फ़िज़ूल ।

चांदनी रात में चांद के सामने यूँ -
आपका इसकदर रूठ जाना फ़िज़ूल ।

शर्त है प्यार में प्यार की बात हो ,
प्यार को बेवजह आजमाना फ़िज़ूल ।

लफ्ज़ को बिन तटोले हुये ये'प्रभात'
बज़्म में कोई भी गीत गाना फ़िज़ूल ।