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अब चलो ये भी ख़ता की जाए /गोविन्द गुलशन

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अब चलो ये भी ख़ता की जाए दिल के दुशमन से वफ़ा की जाए

वो ही आए न बहारें आईं क्या हुई बात पता की जाए

है इसी वक़्त ज़रूरत उसकी बावुज़ू हो के दुआ की जाए

ज़ुल्म भरपूर किए हैं तूने अब अनायत भी ज़रा की जाए

दर्दे-दिल है ये मज़ा ही देगा दर्दे-सर हो तो दवा की जाए