भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अग्नि धर्म है शुचिता का, सुन्दरता का / कात्यायनी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:10, 16 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह=फुटपाथ पर कुर्सी / कात्यायनी }…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूर्य के प्रकाश में
नहाया हुआ पवित्र-निष्पाप-निर्वसन
एक नवजात शिशु की तरह
-जीवन का यह बिम्ब
उभरता है सहसा
आँखों के सामने
और फिर नाचता हुआ
आग के एक गोले की तरह
दूर चला जाता है।

रचनाकाल : जनवरी-अप्रैल, 2003