भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुड़ मुड़ के न देख / श्री ४२०
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:21, 17 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: मुड़ मुड़ के न देख, मुड़ मुड़ के<br /> ज़िंदगानी के सफ़र में तू अकेला ह…)
मुड़ मुड़ के न देख, मुड़ मुड़ के
ज़िंदगानी के सफ़र में तू अकेला ही नहीं है
हम भी तेरे हमसफ़र हैं
आये गये मंज़िलों के निशाँ
लहरा के झूमा झुका आसमाँ
लेकिन रुकेगा न ये कारवाँ
मुड़ मुड़ के न देख ...
नैनों से नैना जो मिला के देखे
मौसम के साथ मुस्कुरा के देखे
दुनिया उसी की है जो आगे देखे
मुड़ मुड़ के न देख ...
दुनिया के साथ जो बदलता जाये
जो इसके ढाँचे में ही ढलता जाये
दुनिया उसी की है जो चलता जाये
मुड़ मुड़ के न देख ...