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प्रकृति की ओर / भरत प्रसाद
Kavita Kosh से
- सुना है-
- ममता के स्वभाववश
- माता की छाती से
- झर-झर दूध छलकता है
- मैं तो अल्हड़ बचपन से
- झुकी हुई सांवली घटाओं में
- धारासार दूध बरसता हुआ
- देखता चला आ रहा हूँ।
- आत्मविभोर कर देने वाला
- यह विस्मय
- मुझे प्रकृति के प्रति
- अथाह कृतज्ञता से
- भर देता है।