भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई / गुलज़ार
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:29, 24 फ़रवरी 2010 का अवतरण
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछलता है कोई
फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुग़ालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई