भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गम की बारिश ने भी तेरे नक्श को धोया नहीं / मुनीर नियाज़ी
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:53, 25 फ़रवरी 2010 का अवतरण
गम की बारिश ने भी तेरे नक्श को धोया नहीं
तूने मुझको खो दिया, मैंने तुझे खोया नहीं
नींद का हल्का गुलाबी सा खुमार आंखों में था
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं
हर तरफ़ दीवार-ओ-दर और उनमें आँखों का हुजूम
कह सके जो दिल की हालत वो लबे-गोया नहीं
जुर्म आदम ने किया और नस्ले-आदम को सजा
काटा हूँ जिंदगी भर मैंने जो बोया नहीं
जानता हूँ एक ऐसे शख्स को मैं भी 'मुनीर'
गम से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं