भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होठों पे सच्चाई रहती है / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:35, 28 फ़रवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होठों पे सच्चाई रहती है जहाँ दिल में सफ़ाई रहती है
हम उस देश के वासी हैं
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है !

मेहमां जो हमारा होता है वो जान से प्यारा होता है
ज़्यादा की नहीं लालच हम को थोड़े में गुज़ारा होता है
बच्चों के लिए जो धरती माँ
सदियों से सभी कुछ सहती है
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है !

कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं, इन्सान को कम पहचानते हैं
ये पूरब है, पूरब वाले हर जान की कीमत जानते हैं
हिल-मिल के रहो और प्यार करो
इक चीज़ यही तो रहती है
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है !

जो जिस से मिला सीखा हम ने, ग़ैरों को भी अपनाया हमने
मतलब के लिए अन्धे बनकर रोटी को नहीं पूजा हम ने
अब हम तो क्या सारी दुनिया
सारी दुनिया से कहती है
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है !