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झूमती चली हवा याद आ गया कोई / शैलेन्द्र

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झूमती चली हवा, याद आ गया कोई

बुझती-बुझती याद को, फिर जला गया कोई !


खो गई हैं मंज़िलें, मिट गए हैं रास्ते

गर्दिशें ही गर्दिशें, अब हैं मेरे वास्ते

और ऐसे में मुझे फिर बुला गया कोई !


चुप है चांद-चांदनी, चुप यह आसमान है

मीठी-मीठी नींद में सो रहा जहान है

आज आधी रात को क्यों जगा गया कोई !