Last modified on 1 मार्च 2010, at 10:52

मन भावन के घर जाए गोरी / शैलेन्द्र

Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:52, 1 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन भावन के घर जाए गोरी
घूँघट में शरमाए गोरी
बंधी रहे ये प्यार की डोरी
हमें ना भुलाना...

बचपन के दिन खेल गंवाए
आई जवानी तो बालम आए
तेरे आंगन बंधे बधाई गोरी
क्यों नैना छलकाए गोरी
हमें ना भुलाना...

इस दुनिया की रीत यही है
हाथ जो थामे मीत वही है
अब हम तो हुए पराए गोरी
फिर तेरे संग जाए गोरी
हमें ना भुलाना...

मस्ती भरे सावन के झूले
तुझको कसम है जो तू भूले
अब के जब वापस आए गोरी
गोद भरी ले आए गोरी
हमें ना भुलाना...