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सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
प्रीत में है जीवन झोकों
कि जैसे कोल्हू में सरसों
प्रीत में है जीवन जोखों
भोर सुहानी चंचल बालक,
लरकाई (लडकाई) दिखलाये,
हाथ से बैठा गढे खिलौने,
पैर से तोडत जाये ।
वो तो है, वो तो है
एक मूरख बालक,
तू तो नहीं नादान,
आप बनाये आप बिगाडे
ये नहीं तेरी शान, ये नहीं तेरी शान
ऐसा क्यों, फ़िर ऐसा क्यों...