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ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के / ग़ालिब
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ग़ैर ले महफ़िल में, बोसे जाम के
हम रहें यूँ तिश्ना-लब पैग़ाम के
ख़स्तगी का तुम से क्या शिकवा, कि ये
हथकंडे हैं चर्ख़-ए-नीली फाम के
ख़त लिखेंगे, गर्चे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
रात पी ज़मज़म पे मय और सुबह दम
धोए धब्बे जाम-ए-अहराम के
दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर
ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के
शाह के है ग़ुस्ल-ए-सेहत को ख़बर
देखिये, कब दिन फिरें हम्माम के
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के