भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिफलन / नीलेश रघुवंशी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 3 मार्च 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने हाथ उठाया फूल की ओर
उसने कहा-- मत जुदा करो मुझे मेरी डाल से
उसकी एक न सुनी मैंने
तोड़कर रख लिया हथेली पर
ख़ून से सन गई है मेरी हथेली
काँटों ने बांध लिया है मोर्चा
मेरे ख़िलाफ़।