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नये युग के स्पार्ट्कस / मुकेश मानस

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कभी हुआ था एक मनु
जिसने बड़े जतन से
बनाई थी एक सलीब
और उस सलीब पर टाँग दिया था
उसने एक विचार

उस विचार से जन्मे फिर
असँख्य असँख्य मनु
और उन्होंने बना डालीं
असँख्य असँख्य सलीबें
जिन पर टाँगा जाता रहा हमें

लो
हम फिर से जी उठे हैं
अब हम हैं सर्वव्यापी
हवा में, पानी में
उजाले में, सुगन्ध में
किताबों में, विचारो में
साँसो की रवानी में
संघर्ष की कहानी में
हम हैं ज़िन्दगानी में

हम हैं
नए युग के स्पार्टकस
अब कैसे चढ़ा पाओगे
हम को किसी भी सूली पर


रचनाकाल : 2001