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तुम्हीं को देखा / चंद्र रेखा ढडवाल

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ज़िन्दगी का सर्वाधिक सुखद भी
जब घट रहा था मैं असम्पृक्त नहीं थी
इतनी उदारता उस पल भी
नहीं दिखाई तुमने
कि अपनी ख़ुशी के साथ
मैं निर्विघ्न जी लेती
लड्डू बेसन के
या बून्दी के
इस हाथ से उस हाथ पहुँचते
चूर-चूर यदि नहीं
टुकड़ा-टुकड़ा तो
हुए हैं