भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बर्फ़ / अरविन्द चतुर्वेद
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:53, 7 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अरविन्द चतुर्वेद |संग्रह=सुन्दर चीज़ें शहर के …)
मुझसे टकराया मिट्टी का कच्चा घड़ा
और मैं टूट कर बिखर गया
एक हहराती नदी
अचानक मुझे भिगो गई नींद में
आज तक गीले हैं
मेरे कपड़े
मैं कहाँ सुखाने जाऊँ इन्हें
क्या बीती सदी के फ़्रीज में
जमाई हुई बर्फ़ हूँ मैं
जिसे पिघलना है
अब नई सदी की धूप में!