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ऊबे हुए विषधर/ चंद्र रेखा ढडवाल

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हर सुबह शिवलिंग पर जो दूध चढ़ाते हो
उसे बड़े-बड़े स्याह लाल फूलों से
भरी क्यारियों से दुबके साँप
पी जाते हैं
दूध से ऊबे वे विषधर
तुम्हारे घर आने जाने वालो को
काट लिया करते हैं कभार
इसी से आने से पूर्व
मैं पूछ लिया करती हूँ
कि इधर हाल ही में
कोई मरा है क्या


इसमें मेरी इच्छा इतना
तुम्हें ज़ाहिर करने की नहीं होती
जितना जान का मोह
मुझे उकसाता है


जिसे जब तक तिलांजली दे कर
मैं तुम तक आया करती हूँ
क्यों कि तुम्हारे हाथों खिंची लकीरें
भाग्य-रेखाएँ हो जाती हैं