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ठीक अपने पिता की तरह / चंद्र रेखा ढडवाल
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उसके और सड़क के बीच
एक पारदर्शी काँच का पर्दा है
जिसके पीछे की
पिता की कुर्सी पर बैठते ही
वह बड़ा दिखने लगा है
इतना
कि सामने खड़ी माँ
प्रतीक्षा करती है
बही खातों से सिर उठाए तो बात शुरू करे
फिर उसे लगता है
कि सिर झुकाए ही
वह सुन लेना चाहता है
बोलने को होती है
कि नौकर को
उसकी लापरवाहियाँ गिनवाते
वह दहाड़ता है सहसा
हल्के पाँव
सामने से
हट जाती है माँ
और वह काँच के परे
सड़क पर आते जाते-लोगों को
घूरने लगता है
ठीक अपने पिता की तरह