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भरोसा आज भी / चंद्र रेखा ढडवाल
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मान करे भले ही
सौन्दर्य पर
ज्ञान पर
धनार्जन पर
भरोसा आज भी
उस प्यार पर ही
जिसके बिना पुरुष जी नहीं पाता
अपनी उस सम्हाल पर ही
जिसके बिना बच्चा नहीं पलता
और उस विश्वास पर ही
कि बिन घरनी
घर भूत का डेरा
***
यह प्यार
यह संभाल
यह विश्वास
ख़ून की बूँद-बूँद से
सींचा जाकर भी
न रह जाए बस पौध ही
घुटनों-घुटनों
कन्धों से ज़रा ऊपर
सिर से सरकता पेड़ बने
और दे छाँव घनेरी
***
हे ! ईश्वर
हर व्रत पूजा का
प्रसाद यही दे
औरत को.