भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाहिये अच्छों को जितना चाहिये / ग़ालिब
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:25, 7 मार्च 2010 का अवतरण (चाहिये अच्छों को जितना चाहिये / गा़लिब का नाम बदलकर चाहिये अच्छों को जितना चाहिये / ग़ालिब कर दिया )
चाहिये अच्छों को जितना चाहिये
ये अगर चाहें तो फिर क्या चाहिये
सोहबत-ए-रिन्दां से वाजिब है हज़र
जा-ए-मै अपने को खेंचा चाहिये
चाहने को तेरे क्या समझा था दिल
बारे अब इस से भी समझा चाहिये
चाक मत कर जेब बे अय्याम-ए-गुल
कुछ उधर का भी इशारा चाहिये
दोस्ती का पर्दा है बेगानगी
मुंह छुपाना हम से छोड़ा चाहिये
दुश्मनी में मेरी खोया ग़ैर को
किस क़दर दुश्मन है देखा चाहिये
अपनी रुस्वाई में क्या चलती है सअई
यार ही हंगामाआरा चाहिये
मुन्हसिर मरने पे हो जिस की उमीद
नाउमीदी उस की देखा चाहिये
ग़ाफ़िल इन महतलअतों के वास्ते
चाहने वाला भी अच्छा चाहिये
चाहते हैं ख़ूबरुओं को "असद"
आप की सूरत तो देखा चाहिये